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नसीब

क्या सोचा था क्या मिला पता नहीं मेरे नसीब में क्या है जिसकी उम्मीद होती है वो ही नहीं मिलती है. उलझन बढ़ती है सुकून घटती है   

नज़र

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हमसे नज़रे फिरने जरूरत नहीं हम वादा निभाते है किसी और को मजबूर नहीं करते निभाने की..   

राही

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भटके हुए राही की मंजिल तू है सुना था तो क्यों मेरी मंजिल तय नहीं कर रहा है क्यों मुझे भटका रहा है   

हमसफर

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रास्ता चाहे केसा हो हमसफर अछा हो तो सफर का में मज़ा आने लगता है..   

चुपी ने लूट लिया

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कभी तुम चुप रहे कभी हम चुप रहे लेकिन वक़्त निकल गया यह चुपी ने सबकुछ लूट लिया..