रिश्ता
एक अंजाना सा चेहरा सपनों में आता है
मुझे हमेशा अपने ओर बुलाता है
जेसे जनम जनम का रिश्ता है
वेसे ही कोइ डोर मुझे उसकी तरफ खिंचता है
जाने कौनसी वह डोर है
जो मुझे उसकी तरफ खिंचता है
में भी पगली की भाती,दिवानी की तरह
उसके और खिंची जाती हूँ
जाने वह अंजान किधर है
लेकिन मुझे लगता है मेरे आसपास है
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