सुना है मंदिर मस्जिद गुरुद्वारा चर्च में मनोकामनाएं पूरी होती है लेकिन मेरी दुआ क्यों कहीं कुबूल नहीं हो रही है ज्यादा तो माँगा नहीं है मेंने फिर भी देरी क्यों हो रही है?
कौन कहता है तू पत्थर की मुरत है मुझे तो तेरा हँसना रौना सब दिखता है तू अभिमान भी करती है तू गुस्सा भी करती है प्यार भी जताती है पर एक शिकवा है तुझे सामने क्यों नहीं आती है????