अनजान
तुम जानकार अनजान क्यूँ बनते हो
मेरे होठों से सबकुछ जानना चाहते हो
पर इस बात को में कैसे कहूँ तुमसे
के मुझको प्यार है सिर्फ तुमसे
में जानती हूँ तुम इसे जानते हो
फिर भी मेरे होठों से जानना चाहते हो
कितनी बार में कह चुकी हूँ मुझको प्यार है सिर्फ तुमसे
और मुझे क्या कहना हैं अकल में घुसता नहीं है
तुम ही मुझे कोइ राह बताओ
सायाद उस पर चलकर में तुम्हे खुश करदूँगी
तुम्हे कुछ नहीं पता यह तुम ना बोलोगे
क्यूँ के मुझे पता है इसके बारे में तुम्हे सबकुछ पता है
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