ग्रह मंडराना

चारों तरफ़ मेरे ग्रह मंडरा रहे हैं
जेसे में पृथ्वी हूँ और वे चांद.
पर इस पृथ्वी को क्या चाहिए उसका एहसास चांद को नहीं है फिर भी वो इर्दगिर्द घूम रहा है.

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