अनकही अल्फाज़

कुछ अनकही अल्फाज़ आज भी मेरे कानों में गूंज रहा है
शायद मुझे सुनने की आदत नहीं थी तब लेकिन अब उसे सुनने के लिए कान तरस रहे हैं 


 

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